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Madhya Pradesh

“Enlightenment through Spiritual Wisdom” One-Week Discourse

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Sagar (Madhya Pradesh): In the midst of a busy market area in Sagar, the Brahma Kumaris have arranged a program Gyan Yagya, Enlightenment through Spiritual Wisdom, for the public for a week, in which Rajyogini BK Geetha imparted the divine knowledge.

Daily 6 am to 7 am, there are Physical Exercises with Musical Rhythm. The Art of Raja Yoga Meditation is taught to keep the Mind healthy. In this it is explained, “How a single negative Thought can affect our Health”. So instead of controlling the Mind, it is given a new direction by creating positive Thoughts.

In the next session, 7 am to 8 am, BK Geeta especially talks about Tension. The cause for our pains and sorrows in life is none but our own Negative Thoughts. So we need to empower our Mind with Positive Thoughts.

In the afternoon session, she highlighted the Rise and Fall of India. She explained that Creation has 4 parts through which it rotates, beginning with SatYug (Golden Age) followed by Treta Yug (Silver Age), Dwapar Yug (Copper Age) and Kali Yug (Iron Age). In India during Satya Yug Deities Sri Laxmi Narayan were the Sovereign Rulers. It was called Heaven, very Auspicious and Pure. Nature also was full of Sanctity. It is called the Golden Age. India of that Era is known as the Golden Bird.

The same World of Deities has now become Vicious, Impure and Degraded, called Hell. Revival of such a fallen World back to its Golden Era is possible only by incorporeal God Shiva. He pledged that He will descend as and when Unrighteousness and Sinful acts become rampant in India. It is His Mission to uplift True Religion and wipe out all other Religions in the World. For this He incarnates into an aged old Man’s body to reinstate the Ancient Deity Religion by imparting the knowledge of easy simple Raja Yoga. She revealed many more such secrets during her discourse.

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भारत का उत्थान और पतन कैसे??
काम क्रोध मद लोभहि,नाथ नरक  के पंथ अर्थात काम वासना ,क्रोध,लोभ,अहंकार और मोह ये सब विकार मनुष्य को नरक के ओर ले जाने वाले हैं।-गीता दीदी
सागर के  भीतर बाजार में  आयोजित सप्त दिवसीय ज्ञान यज्ञ में प्रतिदिन म्यूजिकल exercise कराई जा रही है।जिसमें खास तौर पर तन के साथ मन को स्वस्थ बनाने की विधि मैडिटेशन कराया जाता है।सुबह 6 से 7 के इस physical exercise सत्र के बाद में  मन को स्वस्थ बनाने की कला राजयोग का अभ्यास कराया जाता है।जिसमें मुख्य यह बताया जाता है कि हमारे मन की एक सोच कैसे हमारे जीवन पर कितना बड़ा प्रभाव डालती है तो अब मन को मारने के बजाए सुधारने और उसे एक नई दिशा राजयोग के माध्यम से दी जा रही है।सुबह के दूसरे सत्र 7 से 8 में गीता दीदी ने तनाव मुक्ति पर विशेष व्याख्यान दिया और बताया कि दूसरा कोई हमारे जीवन में दुखो का कारण नही है बल्कि हमारी खुद की नकारात्मक सोच ही हमे दुख देती है।और इससे अगर हम छूटना है तो हमे अपने स्वयं के मन को सशक्त बनाने की जरूरत है।क्योंकि कहा भी जाता है कि जब मन चंगा तो कठौती में गंगा।
दोपहर के सत्र में आज गीता दीदी ने “-भारत के उत्थान और पतन की कहानी ” पर विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि ये सृष्टि के चक्र को 4 भागों में बांटा गया है,जिसकी शुरुआत सतयुग से होती है सतयुग के बाद त्रेतायुग फिर द्वापरयुग एवं कलियुग आता है। इस सृष्टि की शुरुआत में जब इस धरा पर देवताओं का आगमन हुआ तब श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य था।  उस समय सारी दुनिया सतोप्रधान ,प्रकृति भी सतोप्रधान थी।उस समय को आज भी कहते है कि भारत सोने की चिड़िया थी ,शेर गाय भी एक घाट पर पानी पीते थे।जहाँ भारत  की   देवसंस्कृति वसुदेव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत था।इस काल की समस्त आत्माएं 16 कला सम्पन्न थी पवित्र थी जिसके कारण उस युग मे दुख,अशांति,रोग,लड़ाई कुछ भी नही था।त्रेता युग में श्री सीता राम का राज्य आया ।और इस समय  कलाएं 14 हो गई ।इन देवताओं के समय को हम राम राज्य के नाम से आज भी याद करते है।फिर जब द्वापर युग आता है तब आत्मा की 8 कलाएं हो गई एवं अब आत्माएं पूज्य से पुजारी बन जाती है एवं इसी युग से भगवान की पूजा की शुरुआत हुई एवं इसी समय वेद ग्रंथो की रचना आदि हुई।यहाँ आत्माओं के जन्म 21 हो जाते हैं एवं आत्माएं अब प्रकृति की दासी बन जाती हैं।और कलियुग के अंत मे आते आते आत्माएं बिल्कुल पतित,तमोप्रधान बन जाते हैं जिसके कारण आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं।
       अब ऐसी पतित तमोप्रधान दुनिया को पुनः पावन और सतोप्रधान बनाने भगवान अपने वायदे अनुसार की-जब जब धरा पर पाप ,अत्याचार की अति होगी तब अनेक धर्मो का विनाश और सत्य धर्म की स्थापना और साधुओं का भी उद्धार करने  परमात्मा साधारण मनुष्य तन का आधार लेकर आत्माओ का उद्धार करने आते हैं और सहज राजयोग की शिक्षा देकर फिर से आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना करते हैं।और जब परमात्मा इस धरा पर आते है तब पुनः इस भारत मे नारी के गौरव को पुनः स्थापित करते हैं जहाँ कहते थे कि जहाँ नारियों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते है।इस बात को चरितार्थ करने आज परमात्मा ने नारियों को ज्ञान का कलश बहिनों और माताओं के सिर पर रखा।इसी कारण आज भी हमारे यह बच्चे का पहला गुरु माँ ही होती है।और जब परमात्मा इस धरती पर आते हैं उस समय को गुप्त युग अर्थात संगमयुग कहा जाता है, और  अब परमात्मा आत्माओं को पुनः उसके मूल दैवीय गुणों से भरपूर करते हैं और आत्माओं के साथ साथ पूरी प्रकृति को पावन बनाते हैं और इस धरा को फिर से स्वर्ग बनाते हैं।  आज जो आत्मा रावण की पंचवटी में अर्थात  5 तत्वों के शरीर में बैठी है  ओर दुखी है अब हम सब आत्मा रूपी सीताये है । ये कहानी हम सबकी है असली सीता चोरी नही हुई सीता की छाया चोरी हुई । आज सब इच्छा में फसे है इसलिए रावण रूपी दुश्मन ने सबके मन बुद्धि को चुरा लिया । ऐसे कई रहस्यों को स्पष्ट किया ।
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