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शाश्वत यौगिक कृषि विषय पर अनुसंधान के लिए डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के साथ किया गया एमओयू

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शाश्वत यौगिक कृषि विषय पर अनुसंधान के लिए डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के साथ किया गया एमओयू

डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय भावे ने कहा कि भारत की संस्कृति प्राचीन है। कृषि व्यवसाय नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। भारत में कई दशकों से संकर किस्मों और रासायनिक खादों का उपयोग हरित क्रांति के रूप में शुरू किया गया था। 1970 से पहले जो खेती होती थी, वह प्राकृतिक खेती थी। अब किसान फिर से प्राकृतिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं। आज जरूरत है कृषि में विज्ञान और अध्यात्म दोनों का सुंदर समन्वय स्थापित करने की। जब विज्ञान अपनी सीमा पर पहुँच जाता है, तो अध्यात्म शुरू होता है और इसीलिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग और कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होना एक महान अवसर है, ऐसा कुलपति डॉ. संजय भावे ने कहा।

डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ, दापोली और प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के कृषि एवं ग्रामीण विकास विभाग के बीच यौगिक कृषि विषय पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। एमओयू के अवसर पर कुलपति डॉ. संजय भावे, महाराष्ट्र कृषि एवं शैक्षणिक अनुसंधान परिषद पुणे के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. राम खर्चे, ब्रह्माकुमारीज कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग के राष्ट्रीय समन्वयक बी. के. सुनदा, कृषि विद्यापीठ के अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रशांत शहारे, शिक्षा निदेशक डॉ. सतीश नरखड़े, विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. मकरंद जोशी, सभी महाविद्यालयों के सह अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक एवं अधिकारी तथा स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेन्द्र की प्रभारी बी. के. सारिका बहन की उपस्थिति रही। कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी गणमान्यों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम में कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग की अध्यक्ष बी. के. सरला, उपाध्यक्ष बी. के. राजू, मुख्यालय संयोजक बी. के.सुमन्त कुमार, बी. के. शशिकान्त भाई की ऑनलाइन उपस्थिति रही।

बी. के.सरला बहन ने आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन दिया तथा बी. के. राजू भाई ने शुभ कामनाएं दी। उसके बाद राष्ट्रीय समन्वयक सुनंदा बहन ने मार्गदर्शन किया। साथ ही डॉ. राम खर्चे ने परिचयात्मक जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नरेंद्र प्रसादे ने किया तथा आभार डॉ. प्रकाश क्षीरसागर ने व्यक्त किया।