अर्पण, तर्पण व समर्पण से बनता जीवन मूल्यवान
ज्ञान सरोवर में धर्म सम्मेलन का खुला सत्र
माउंट आबू, ३ अगस्त:ञ्महाराष्ट्र नांदेड़ गुरुद्वारा अधीक्षक सरदार रणजीत सिंह ने कहा कि अर्पण, तर्पण व समर्पण से ही जीवन मूल्यवान बनता है। संयम, सदभावना व प्रेम से ही जीवन की वास्तविकता का अनुभव किया जा सकता है। इंसान, इंसान के काम आये यही सच्ची इबादत है। यह बात उन्होंने रविवार को ब्रह्माकुमारी संगठन के ज्ञान सरोवर अकादमी परिसर में धार्मिक प्रभाग की ओर से मानवीय मूल्यों में अध्यात्म की भूमिका विषय पर आयोजित सम्मेलन के खुले सत्र को संबोधित करते हुए कही।
राष्ट्र संत रामेश्वर तीर्थ महाराज ने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्वति संस्कारविहीन होने से नई पीढ़ी जनभावनाओं के अनुरुप अपने कत्र्तव्यों से विमुख हो रही है। शिक्षा में अध्यात्म को जोडऩे की जरूरत है।
मोगा से आई १०८ साध्वी विजयलक्ष्मी पुरी ने कहा कि भविष्य के कर्णधारों बच्चों को मूल्यों से सुशोभित करना अभिभावकों की अहम जिम्मेवारी है।
नई दिल्ली से आए अर्थशास्त्री डॉ. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा कि वर्तमान समय मानव खण्डित यांत्रिक विश्व दृष्टि के आधार पर संसार को देख रहा है। जिससे समाज में विषमता बढऩे के साथ मतभेद की भावना पनप रहा है। मानव को स्नेह, शान्ति, सौम्य व्यवहार की आवश्यकता है। निष्काम रूप से सेवा में संलग्र ब्रह्माकुमारी संगठन ही विश्व को एकता को सूत्र में पिरो सकता है।
मुंबई के जगन्नाथ पाटिल महाराज ने कहा कि दुर्बल भावनाओं से निजात पाने के सार्थक प्रयास ब्रह्माकुमारी संगठन के राजयोग के नियमित अभ्यास से ही सफल होंगे।
प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके ऊषा बहन ने कहा कि मानसिक विकारों से मानवीय मूल्यों का पतन हो रहा है। मूल्यों को जीवन में लाने का मुख्य स्रोत अध्यात्म ही है। राजयोग के अभ्यास से ही अध्यात्म के सूक्ष्म भावों को जाना जा सकता है।
डॉ. रामचंद्र देखणे ने कहा कि आत्मिक व्यवहार से विश्व बन्धुत्व की भावना जागृत होती है। देह के दोषों का चिंतन करने से ही आत्मिक शक्ति नष्ट होती है।
हरियाणा, अबंाला से आए स्वामी कैलाश स्वरूपानंद ने कहा कि अध्यात्मिक ज्ञान के बिना धन, वैभव व पद के आधार पर जीवन का मूल्यांकन करना अधूरा है। अध्यात्म से जुडऩे वाले व्यक्ति को जीवन के मूल्य, लक्ष्य व कत्र्तव्य का निरंतर बोध रहता है।
प्रभाग उपाध्यक्ष बीके गोदावरी, वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका बीके सरला बहन ने कहा कि मूल्यों के अभाव में मानव में दानवता के लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं। राजयोग के अभ्यास से ही परमात्म शक्तियों की अनुभूति होती है।