Brahma Kumaris
ब्रह्माबाबा की 54वीं पुण्यतिथी पर कार्यक्रम- 54th Punyatithi of Prajapita Brahma Baba

ईश्वरीय ज्ञान में है असंभव को संभव करने की अतुल्य ताकत – घोरवड़े
ब्रह्माबाबा की 54वीं पुण्यतिथि पर उमड़े श्रद्धालू
अलसुबह तीन बजे से अनवरत रूप से चल रही साधना
हजारों की संख्या में देश-विदेश से आए राजयोगी
संगठन के लिए अहम है 18 जनवरी का दिन
माउंट आबू, 18 जनवरी।
भारतीय नौसेना उपाध्यक्ष सतीश एन. घोरवडे ने कहा कि ईश्वर के ज्ञान में असंभव को संभव करने की अतुल्य ताकत है। ज्ञान का प्रकाश न केवल मन के अंधकार को समाप्त करता है बल्कि हर संकल्प को समर्थ बना देता है। जिस मन में ईश्वरीय ज्ञान के संकल्पों के बीच रोपित होते हैं वह मन खुशी-खुशी हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम हो जाता है। यह बात उन्होंने बुधवार को ब्रह्माकुमारी संगठन के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय पांडव भवन में विश्व शांति व मानवीय एकता के रूप में मनाई जा रही प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में कही।
उन्होंने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए कहा कि बारह वर्ष पूर्व वे ब्रह्माकुमारी संगठन से जुड़े थे। तब से लेकर वे नियमित राजयोग का अभ्यास करने के साथ ईश्वरीय महावाक्य का अनुसरण करते हैं। शिव बाबा के ज्ञान से जीवन में आने वाली चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार करने की ताकत मिलती है।
उन्होंने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए कहा कि बारह वर्ष पूर्व वे ब्रह्माकुमारी संगठन से जुड़े थे। तब से लेकर वे नियमित राजयोग का अभ्यास करने के साथ ईश्वरीय महावाक्य का अनुसरण करते हैं। शिव बाबा के ज्ञान से जीवन में आने वाली चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार करने की ताकत मिलती है।
ज्ञान सरोवर अकादमी परिसर निदेशिका, संगठन की संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दीदी डॉ. निर्मला ने कहा कि दोषपूर्ण विचारधारा से ही व्यक्ति में दोषजन्य कुरूप संस्कारों की उत्पत्ति होती है। स्वानुभूति में खरा उतरने के लिए आत्मा के अनादि पवित्र संस्कारों का ज्ञान होना जरूरी है।
संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके शशिप्रभा ने कहा कि मानव के मूलस्वरूप में उत्पन्न होने वाली नई चेतना शुद्ध विचारों से परिपूर्ण होती है। शुद्ध विचारों वाला व्यक्ति ही दूसरों के संस्कारों को शुद्ध करने को प्रोत्साहित कर सकता है। हृदय के भाव, संकल्प, अनुक्रियाओं को परिशुद्ध करने से मन में जागरूकता व शुद्धिभाव के समन्वय का विकास होता है जिससे व्यक्ति, वस्तु व पदार्थ का वास्तविक स्वरूप प्रकट होने लगता है।
संगठन के अतिरिक्त सचिव बीके बृजमोहन आनंद ने कहा कि राजयोग, ध्यान व हृदय से की गई प्रार्थना से साधक के अतंस में छिपी समस्त सात्विक शक्तियों के साथ अनंत ऊर्जाओं का जागरण प्रारंभ हो जाता है।
इन्होंने भी व्यक्त किए विचार
इस अवसर पर संगठन के सचिव बीके निर्वैर, कार्यकारी सचिव बीके मृत्युजंय, मल्टीमीडिया चीफ बीके करूणा, दिल्ली जोन निदेशिका बीके आशा, वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका बीके शीलू बहन, ग्लोबल अस्पताल निदेशक डॉ. प्रताप मिढ्ढा, राजयोगिनी बीके शारदा बहन आदि ने भी ब्रह्माबाबा के चरित्रों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए उनके पदचिन्हों पर चलने का आहवान किया।
इस अवसर पर संगठन के सचिव बीके निर्वैर, कार्यकारी सचिव बीके मृत्युजंय, मल्टीमीडिया चीफ बीके करूणा, दिल्ली जोन निदेशिका बीके आशा, वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका बीके शीलू बहन, ग्लोबल अस्पताल निदेशक डॉ. प्रताप मिढ्ढा, राजयोगिनी बीके शारदा बहन आदि ने भी ब्रह्माबाबा के चरित्रों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए उनके पदचिन्हों पर चलने का आहवान किया।
दिन भर चलती रही साधना
विश्व शांति दिवस के रूप में मनाई जा रही ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि को लेकर अलसुबह दो बजे से ही दिन भर पांडव भवन के चारों धाम शांति स्तंभ, बाबा की कुटिया, बाबा का कमरा, हिस्ट्री हॉल में निरंतर साधना चलती रही।
विश्व शांति दिवस के रूप में मनाई जा रही ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि को लेकर अलसुबह दो बजे से ही दिन भर पांडव भवन के चारों धाम शांति स्तंभ, बाबा की कुटिया, बाबा का कमरा, हिस्ट्री हॉल में निरंतर साधना चलती रही।
संगठन के लिए अहम है 18 जनवरी का दिन
संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्माबाबा ने विशेषकर सन १९३६ से साधना के बल पर अपनी संपूर्ण अव्यक्त अवस्था को १८ जनवरी १९६९ कसे प्राप्त किया था। ब्रह्मा बाबा की तपस्या ऐसी थी जो उनके पास जाने से ही आने वाली नई स्वर्णिम सृष्टि के साक्षात्कार होने लगते है। बाबा की वाणी के पवित्र वायब्रेशन से हर कोई अपनी देह की सुधबुध भूल आत्मानुभूति में स्थित होकर अतिन्द्रिय सुख का अनुभव करता था। इसी वजह से पांडव भवन में १८ जनवरी आते ही वह सारी स्मृतियों का गहरा अहसास होता है।
संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्माबाबा ने विशेषकर सन १९३६ से साधना के बल पर अपनी संपूर्ण अव्यक्त अवस्था को १८ जनवरी १९६९ कसे प्राप्त किया था। ब्रह्मा बाबा की तपस्या ऐसी थी जो उनके पास जाने से ही आने वाली नई स्वर्णिम सृष्टि के साक्षात्कार होने लगते है। बाबा की वाणी के पवित्र वायब्रेशन से हर कोई अपनी देह की सुधबुध भूल आत्मानुभूति में स्थित होकर अतिन्द्रिय सुख का अनुभव करता था। इसी वजह से पांडव भवन में १८ जनवरी आते ही वह सारी स्मृतियों का गहरा अहसास होता है।